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रामदास की उत्तर-कथा / विजय कुमार
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(रघुवीर सहाय से क्षमायाचना सहित)
रामदास को लग चुका जब चाकू
हाल हुआ सबका बेकाबू ।
पर डर अब निथर गया था
हर कोई अब उबर गया था ।
कुछ पल जो असमंजस था
अब उसमें घटना का रस था ।
लाश पड़ी है ड्रामा जारी
सभी कवि कितने आभारी ।
क़िस्सा रोचक घटित अनोखा ।
द्रवित हृदय ने सबकुछ सोखा ।
ख़ून वहाँ था जितना भाई
उससे ज़्यादा थी कविताई।
क़िस्साबाज बना हर कोई
जगी सनसनी थी जो सोई।
हर एक ने पतंग बनाई
ख़ूब-ख़ूब जमकर फहराई।
सबके अपने-अपने वृतान्त थे
मनरंजक सब आद्योपान्त थे।
बीच सड़क यह अन्त जो आया
सब कवियों ने नाम कमाया।