रामदास की उदासी / नील कमल
रघुवीर सहाय के रामदास के लिए
गाड़ी की काया में
आत्मा-सा सिमटा यह आदमी
जीवन के रंगों को अर्थ नए देता,
भाषा के वर्णाक्षरों के सहारे
मापता ज्ञान के समस्त भुवन
तीन ही रंग जीवन के,
पीला
हरा
लाल,
बस, तीन ही वर्णाक्षर भाषा के
तीन ही से अक्सर काम लेता है
चला लेता है गाड़ी ज़िन्दगी की
पीले को देखते, चल पड़ने को तत्पर
हरे के साथ, भागता त्वरित गति
लाल पर, मज़बूरन रोकता गाड़ी निर्भूल
और ऐसा करते हुए, आदतन
पैरों तले दबाता,
भाषा के तीन वर्णक्षर
जब भी भागता वह तीव्र गति
कुचला जाता है ए : एक्सिलरेटर,
जीवन के हर मार्ग अवरोधक पर
दबाया जाता है बी : ब्रेक,
सन्तुलन बनाने के विवशता में
पद दलित होता है सी : क्लच,
थमने-दौड़ने के कौशल अब
नये अर्थ पाते हैं, जब वह
तन्मयता से बदलता है ज़िन्दगी का गीयर
पीछे छूटती चीजों को भी
वह आँखों से ओझल नहीं होने देता,
यह बाबू रघुवीर सहाय की कविता का
पलातक नागरिक, रामदास है
(जिसे बता यह दिया गया था
आज उसकी ह्त्या होगी)
लट्टू-सी नाचती पृथ्वी पर
फ़िरकी-सा नाचता रामदास
लगातार कई हत्याओं के बाद भी
रहा जीवित,
लेकिन बचता कहाँ है रामदास
मुश्किल दिनों में , थोड़ा-थोड़ा
मरते हुए
भागता है छूटती साँसों के पीछे
तेजी से बदलते समय के
अर्थ बदलते मुहावरों के हाथों
रोज़ ही मारा जाता है रामदास ।