भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रामदीन / सूर्यकुमार पांडेय
Kavita Kosh से
पैरों में टूटी चप्पल है
और अँगोछा कन्धे पर,
रामदीन निकला है घर से
सुबह सवेरे धन्धे पर।
शाम तलक दस-बीस रुपैया
मज़दूरी से पाएगा,
बीवी-बच्चों संग मिल-जुलकर
रोटी-चटनी खाएगा।
जो सुख मिलता रामदीन को
मेहनत-भरी मजूरी में,
कहाँ मज़ा वह बड़ों-बड़ों की
हलवा-सब्ज़ी-पूरी में!