रामफल, सरकार और पट्टा / शोभनाथ शुक्ल
रामफल..........
सरकार के पीछे भाग रहा है
गले में सरकारी पट्टा लटकाये
सरकारें कहाँ मुड़ती हैं
पीछे/उसे देखने के लिए...........।
आज तक बेदख़ल है/अपनी ज़मीन से
जो उसकी होकर भी/उसकी नहीं है.......।
पट्टा तो सरकारी
मिला है, पाँच बीघे का
काबिज़ होने की
जद्दोजेहद जारी है अब तक
दस साल से ऊपर
का समय निकल चुका है
पानी सर के ऊपर/बह चुका है
इसी बीच सरकारें आईं
और गईं
पर उसकी फाइल/और कब्जे की अप्लीकेशन
नहीं चली तो नहीं चली..........।
सरकारें कहाँ क्या
करतीं है........।
वह विबस है/परबश है
ठकुराने/वभनाने पुरवा
से त्रस्त है..........।
इनमें से ही कुछ की
दबगई ही है/कि
कब्जे से वह वेदख़ल है......।
ठाकुर पुरवा से मदद
माँगने जब जाता है
हर-घर में गुहार लगाता है
अपनी फरियाद लिये
तो वाभन पुरवा नाराज़गी दिखाता है......।
पिस रहा है/इन्हीं के बीच
तब धूम-फिर बात अड़ती है
आ विरादरी की
पंचायत बीच/कहाँ क्या तय हो पाता है
कई-कई बार
तो बैठी है पंचायत
पर अपनों के बीच में
वह हर बार खुद को
दुबिधाग्रस्त पाता है...........।
क्योंकि..............
भटक जाती है पंचायत
खुद व खुद जेनुइन मुद्दों से
सरक जाते हैं मुद्दे
दूसरे की ओर धीरे-धीरे
बहस में आ जाती हैं/औरतें
सरकने लगती है जुबान
बड़े, बूढ़े-बूढ़ों की
‘लच्छमनियाँ‘ के लच्छन
अच्छे दिखते नहीं है इधर........।
उधर ‘राम पियारी‘ की खाट
खड़ी करने पर/तुल जाती है पंचायत
भगा कर लाया है/राम लवटन का बेटा........।
उसे.........जाने कहाँ से
कुजात को घर में/रखा है।
विरादरी का सत्यानाश
कर रहा है नालायक
बिना भात दिये/हुक्का पानी पिलाये.......
इतनी बड़ी हिम्मत
हमारी छाती पर/मूँग दल रहा है।
सरपंच बाबू
की मूँछे अचानक/ताव खा जाती हैं
चेहरा अंगारे सा/चमक उठता है
लच्छमनियाँ के बगल
बैठने को मन करता है-।
कोई न कोई/बहाना चाहते है सरपंच बाबू
दूर से घेरना
शुरू करती है पंचायत
राम लवटन को...........।
‘गाँव की इज्जत पर पानी/
न डालो भाई........।
ऐसी छम्मक-छल्लो बहू
तेरे नालायक बेटे के
पास/कहाँ से आई..........। ‘
बहक गई है पंचायत...........।
रामफल.......।
सरपंच बाबू को
फिर से खींचता चाहता है
अपनी जमीन की तरफ
कैसे और कब
कब्जा पायेगा वह........।
वह जानता है
सरपंच बाबू विरादरी के होते हुए भी
बैठकी देते हैं/हर साँझ
ठाकुर पुरवा में तो कभी वाभन पुरवा में।
चौपालों में/चल जाती हैं दारू
बोतलें खुल जाती हैं और फिर
चर्चा में लच्छमनियाँ के साथ
और भी कई युवतियाँ
शामिल हो जाती हैं......।
उसकी जवानी
और बेफिक्र हँसी...
एक साथ/तेजाब भर देती है
गलफड़ों में/और सरपंच बाबू
की मूँछों की नोंक
अचानक........
उनकी उँगुलियों में चुभ जाती है।
और.........
रामफल
इनके-उनके..............सबके पास
दौड़-दौड़ कर
हाँफ- हाँफ कर
चकनाचूर हो जाता है
एक क्षण के लिए
कौंध जाती है आत्महत्या
की बात........फिर अचानक
सँभल जाता है..........।
रामफल........
न्याय के लिए लड़ना चाहता है
हक के लिए
लड़ते-लड़ते
वह मर जाना चाहता है
मुक्ति की कामना लिए
अन्याय के खि़लाफ
जड़ होते समाज में
उसकी जड़ता के खिलाफ......।
दो कदम/आगे बढ़ता है
फिर मुड़ कर पीछे देखता है
तो गाँव के कुछ युवकों का हाथ
एक ताकत की तरह/अपनी ओर
उठा हुआ पता है.....।
रामफल
न्याय की उम्मीद लिए
न्यायालय की ओर
आगे बढ़ जाता है.........।।।