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रामलीला हो चुकी है / ज्ञान प्रकाश आकुल

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रामलीला हो चुकी है,
दर्शकों के दल घरों में खो गये।

और पात्रों ने उतारे
मुकुट , बंदर के मुखौटे
काम जिनके पास था तो
काम पर वे लोग लौटे,
धो लिया चेहरा ज़रा सा,
राक्षस सब आदमी से हो गये।

उड़ गयी रंगत गुलाबी
खुल गया फिर रंग भूरा
फिर ग़रीबी मुस्करायी
दिक्कतों ने खूब घूरा,
लौटने का मन नहीं था,
पर ज़रूरत ने बुलाया तो गये।

क्या विजेता क्या पराजित
मंच के नीचे खड़े हैं
धनुष,रावण के खडग सब
एक झोले में पड़े हैं
आँख में आंसू भरे हैं
राम रावण फिर दरी पर सो गये I