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रामविलास शर्मा के प्रति / रविकान्त

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किस पर्वत ने
दिया तुम्हें
अपना संचित अधैर्य!

तुम्हारी थकती हुई देह पर
बरस रही है जागरण की चमक

विचर रहे हो तुम
आबाद होने की महक के बीच