रामाज्ञा प्रश्न / चतुर्थ सर्ग / सप्तक ४ / तुलसीदास
राम जनक सुभ काज सब कहत देवरिषि आइ।
सुनि सुनि मन हनुमान के प्रेम उमँग न अमाइ॥१॥
देवर्षि नारदजी आकर श्रीरामके अवतारसे होनेवाले सभी शुभ-कर्योका वर्णन करते हैं। उनकी चर्चा बार-बार (किष्किन्धामें) सुनकर हनुमान्जीके मनमें प्रेमकी उमंग समाती नहीं॥१॥
(प्रियजनका संवाद मिलेगा)
भरतु स्यामतन राम सम, सब गुन रूप निधान।
सेवक सुखदायक सुलभ सुमिरत सब कल्यान॥२॥
श्रीभरतजी श्रीरघुनाथजीके समान ही साँवले शरीरवाले और समस्त गुणों तथा रूपके खजाने हैं। वे सेवकोंको सुख देनेवाले हैं। उनका स्मरण करनेसे सभी कल्याण सुलभ हो जाते हैं॥२॥
(प्रश्न फल शुभ है।)
ललित लाहु लोने लखनु, लोयन लाहु निहारि।
सुत ललाम लालहु ललित, लेहु ललकि फल चारि॥३॥
परम सुन्दर श्रीलक्ष्मणजीके प्रिय-मिलन (दर्शन) को नेत्र पानेका लाभ समझो (यह शकुन कहता है कि) सुन्दर पुत्ररत्न (पाकर) उसका लालन-पालन करो और समुत्सुक बनकर चारों फल (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) प्राप्त करो॥३॥
मंगल मूरति मोद निधि, मधुर मनोहर बेष।
रम अनुग्रह पुत्र फल होइहि सगुन बिसेष॥४॥
मंगलकी मूर्ति, आनन्दनिधि, मधुरिमामय मनोहर रूपवाले श्रीरघुनाथजीकी कृपासे पुत्र होगा, यह इस शकुनका विशेष फल है॥४॥
सोधत मख महि जनकपुर सीय सुमंगल खानि।
भूपति पुन्य पयोधि जनु रमा प्रगट भइ आनि॥५॥
यज्ञ-भुमी शुद्ध करते समय जनकपुरमें श्रेष्ठ मंगलोंकी खानि सीताजी इस प्रकार प्रकट हुईं, मानो महाराज जनकके पुण्यरुपी समुद्रसे निकलकर लक्ष्मी प्रकट हो गयी हों॥५॥
(कन्याकी प्राप्ति होगी।)
नाम सत्रुसुदन सुभग सुषमा सील निकेत।
सेवत सुमिरत सुलभ सुख सकल सुमंगल देत॥६॥
सौन्दर्य एवं शीलके भवन शत्रुघ्नजीका नाम मनोहर है, उनकी सेवा एवं स्मरणमें बडी़ सुगमता है और वे सम्पूर्ण सुख एवं कल्याण प्रदान करते हैं॥६॥
बालक कोसलपाल के सेवक पाल कॄपाल।
तुलसी मन मानस बसत मंगल मंजु मराल॥७॥
कोसलनरेश (महाराज दशरथ) के कॄपालु पुत्र सेवकोंका पालन करनेवाले हैं। तुलसीदासके मनरूपी मानसरोवरमें वे मंगलमय सुन्दर हंसों के समान निवास करते हैं॥७॥
(प्रश्न फल उत्तम है।)