रामाज्ञा प्रश्न / द्वितीय सर्ग / सप्तक २ / तुलसीदास
सीय राम लोने लखन तापस वेष अनुप।
तप तीरथ जप जाग हित सगुन सुमंगल रूप॥१॥
लावण्यमय श्रीराम-लक्ष्मण तथा सीताजीका तपस्वी-वेष अनुपम है। तपस्या, तीर्थयात्रा, जप तथा करनेके लिये यह शकुन सुमंगल-स्वरूप (मंगल -सूचक) है॥१॥
सीता लखन समेत प्रभु, जमुना उतरि नहाइ।
चले सकल संकट समन सगुन सुमंगल पाइ॥२॥
श्रीसोताजी और लक्ष्मणजीके साथ प्रभु यमुनाजीके पार उतरकर स्नान करके, समस्त संकटोंको नष्ट करनेवाले मंगलमय शकुन पाकर आगे चले॥२॥
(यात्राके लिये उत्तम फल सूचित होता है।)
अवध सोक संताप बस बिकल सकल नर नारि।
बाम बिधाता राम बिनु माँगत मीचु पुकारि॥३॥
अयोध्यामें सभी नर-नारी श्रीरामके बिना शोक -सन्तापके कारण व्याकुल होकर प्रतिकुल हुए विधातसे पुकारकर मृत्यु माँगते हैं॥३॥
(प्रश्नक-फल अनिष्ट है।)
लखन सीय रघुबंस मनि पथिक पाय उर आनि।
चलहु अगम मग सुगम सुभ, सगुन सुमंगल खानि॥४॥
श्रीरघुनाथजी, श्रीजानकीजी तथा लक्ष्मणजी - इन पथिकेंकि श्रीचरणोंको हृदयमें लाकर (उनका ध्यान करके) अगम्य (विकट) मार्गमें भी चलो तो वह सुगम और शुभ हो जायगा। यह शकुन कल्याणकी खानि है॥४॥
ग्राम नारि नर मुदित मन लखन राम सिय देखि।
होइ प्रीति पहिचान बिनु मान बिदेस बिसेषि॥५॥
श्रीराम-लक्ष्मण तथा जानकीजीकां दर्शन करके गाँवोंकि स्त्री-पुरुष मन-ही-मन आनन्दित हो रहे हैं। (इस शकुनका फल यह है कि) बिना पहिचानके भी प्रेम होगा और विदेशमें विशेष प्राप्त होगा॥५॥
बन मुनि गन रामहि मिलहिं मुदित सुकृत फल पाइ।
सगुन सिद्ध साधम दरस, अभिमान होइ अघाइ॥६॥
वनमें श्रीरामसे मुनिगण मिलते हैं और अपने पुण्योंका फल (श्रीराम - दर्शन) पाकर प्रसन्न होते हैं। यह शकुन साधकको सिद्ध पुरुषका दर्शन होते हैं। यह शकुन साधकको सिद्ध पुरुषका दर्शन होनेकी सूचना देता है, मनचाहा फल भरपूर प्राप्त होगा॥६॥
चित्रकुट पय तीर प्रभु बसे भानु कुल भानु।
तुलसी तप जप जोग हित सगुन सुमंगल जानु॥७॥
सूर्यकुलके (प्रकाशक) सूर्य प्रभु श्रीरामने चित्रकूटमें पयस्विनी नदीके किनारे निवास किया। तुलसीदासजी कहते हैं कि तपस्या, जप तथा योगसाधनाके लिये यह शकुन मंगलप्रद समझो॥७॥