रामाज्ञा प्रश्न / प्रथम सर्ग / सप्तक ४ / तुलसीदास
सीय स्वयंबर समउ भल, सगुन साध सब काज।
कीरति बिजय बिबाह विधि, सकल सुमंगल साज॥१॥
श्रीजानकीजीके स्वयंवरका समय उत्तम है, यह शकुन सब कर्योको सिद्ध करनेवाला है। कीर्ति, विजय तथा विवाह आदि कार्योमें सब प्रकारके मंगलमय संयोग उपस्थित होंगे॥१॥
राजत राज समाज महँ राम भंजि भव चाप।
सगुन सुहावन, लाभ बड़, जय पर सभा प्रताप॥२॥
राजाओंके समाजमें शंकरजीके धनुषको तोड़कर श्रीराम सुशोभित हैं। यह शकुन सुहावना है, बडा़ लाभ होगा, दुसरेकी सभामें विजय तथा प्रतापकी प्राप्ति होगी॥२॥
लाभ मोद मंगल अवधि सिय रघुबीर विवाहु।
सकल सिद्धि दायक समउि सुभ सब काज उछाहु॥३॥
श्रीसीता-रामजीक विवाह लाभ तथा आनन्द-मंगलकी सीमा है॥ यह समय बडा़ शुभ तथा सभी सिद्धियोंको देनेवाला है, सभी कार्योंमें उत्साह रहेगा॥३॥
कोसल पालक बाल उर सिय मेली जयमाल।
समउल सुहावन सगुन भल, मुद मंगल सब काज॥४॥
श्रीअयोध्यानरेश (महाराज दशरथ) के कुमार (श्रीराम) के गलेमें श्रीजानकीजीने जयमाला डाल दी। यह समय शुभ है, शकुन उत्तम है, सब कर्योमें आनन्द और भलाई होगी॥४॥
हरषि बिबुध बरषसिं सुमन, मंगल गान निसान।
जय जय रबिकुल कमल रबि मंगल मोद निधान॥५॥
देवता प्रसन्न होकर पुष्प-वर्षा कर रहे है, मंगलगीत गाये जा रहे हैं, नगारे बज रहे हैं, सूर्यकुलरूपी कमल (को प्रकुल्लित करने) के लिये सूर्यके समान आनंद और मंगलके निधान श्रीरामजीकी जय हो ! जय हो !॥५॥
(प्रश्नी - फल उत्तम है।)
सतानंद पठये जनक दसरथ सहित समाज।
आये तिरहुत सगुन सुभ, भये सिद्ध सब काज॥६॥
महाराज जनकजीने अपने कुलपुरोहित शतानन्दजीको (अयोध्या) भेजा, महाराज दशरथ बरातके साथ जनकपुर आये। (उनके) सभी कार्य सिद्धु हुए। यह शकुन शुभ है॥६॥
दसरथ पुरन परम बिधू, उदित समय संजोग।
जनक नगर सर कुमुदगन, तुलसी प्रमुदित लोग॥७॥
तुलसीदास कहते हैं, कि इस (शुभ) समय (श्रीरामविवाह) का संयोग आनेसे (जनकपुरमें) महाराज दशरथरूपी पूर्ण चंद्रका उदय हुआ है। इससे जनकपुरूपी सरोवरके कुमुदपुष्पके समान सब लोग (नगरवासी) प्रफुल्लित हो गये हैं॥७॥
(यह प्रश्नप-फल प्रियजनका मिलन बतलता है।)