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रामाज्ञा प्रश्न / प्रथम सर्ग / सप्तक ६ / तुलसीदास

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दाइज भयउ् अनेक बिधि, सुनि सिहाहिं दिसिपाल।
सुख संपति संतोषमय, सगुन सुमंगल माल॥१॥
अनेक प्रकारसे (जनकजीद्वारा) दहेज दिया गया, जिसे सुनकर दिक्पाल भी सिहाते। (ईर्ष्या करने लगते) हैं। यह शकुन सुख, सम्पत्ति तथा सन्तोषदायी एवं श्रेष्ठ मंगलपरम्पराका सूचक है॥१॥

बर दुलहिनि सब परसपर मुदित पाइ मनकाम।
चारु चारि जोरी निरखि दुहूँ समाज अभिराम॥२॥
मनकी साध पूर्ण होनेसे सभी वर एवं दुलहिनें परस्पर प्रसन्न हो रही हैं। इन सुन्दर चारों जोड़ियोंको देखकर दोनों (अयोध्या और जनकपूरके) समाज अत्यन्त सुखी हैं॥२॥
(प्रश्न - फल उत्तम है।)

चरिउ कुँवर बियाहि पुर गवने दसरथ राउ।
भये मंजु मंगल सगुन गुर सुर संभु पसाउ॥३॥
महाराज दशरथ चारों कुमारोंका विवाह करके अपने नगर (अयोध्या) को लौट गये। गुरु वसिष्ठ, देवताओं तथा शंकरजीकी कृपासे मंगलमय शकुन हुए॥३॥
(मड्गलकार्यसम्बन्धी प्रश्नंका फल उत्तम है।)

पंथ परसु धर आगमन समय सोच सब काहु।
राज समाज विषाद बड़, भय बस मिटा उछाहु॥४॥
मार्गमें परशुरामजीके आ जानेके समय सभीको चिन्ता हो गयी। राजसमाजमें बड़ी उदासी छा गयी, भयके कारण उत्साह नष्ट हो गया॥४॥
(प्रश्नरका फल अशुभ है।)

रोष कलुष लोचन भ्रुकुटि, पानि परसु धनु बान।
काल कराल बिलोकि मुनि सब समाज बिलखान॥५॥
क्रोधसे लाल नेत्र एवं टेढीं भौहें किये तथा हाथमें फरसा और धनुष्य-बाण लिये मुनि परशुरामजीको (साक्षात) भयंकर कालके समान देखकर पूरा समाज दुःखी हो गया॥५॥
(प्रश्न फल निकृष्ट है।)

प्रभुहि सौपि सारंग मुनि दीन्ह सुआसिरबाद।
जय मंगल सूचक सगुन राम राम संबाद॥६॥
प्रभु श्रीरामको अपना शार्ड्गधनुष्य देकर मुनि परशुरामजीने उन्हें आशीर्वाद दिया। श्रीराम और परशुरामजीकीं वार्ताका यह शकुन विजय और मंगल सूचित करनेवाला है॥६॥

अवध अनंद बधावनो, मंगल गान निसान।
तुलसी तोरन कलस पुर चँवर पताका बितान॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि अयोध्यामें आनन्दकी बधाई बज रही है, मंगल-गीत गाये जा रहे हैं, डंकोंपर चोट पड़ रहीं हैं: नगरमें तोरण बँधे हैं, कलश सजे हैं: चँवर -पताका सहित मंडप सजाये गये हैं॥७॥
(प्रश्न- फल शुभ है।)