भजन-कीर्तन का इस युग में
बदल चुका है ढर्रा।
चरणामृत की जगह देश में
चरता देशी ठर्रा।
जिसे पी के, हज़ारों नर-नार, भवसागर से तरे।
हरे रामा, हरे रामा, रामा-रामा हरे-हरे !
बाँध, वोटरों की आँखों पर
आश्वासन की पट्टी।
नेता घुस गए बाथ-रूम में
ले साबुन की बट्टी।
जहां अंधों की हो भरमार, काना राज करे।
हरे रामा, हरे रामा, रामा-रामा हरे-हरे !
मटका-टाइप जूड़ा सिर पे
सौ बल खाए गोरी।
पनिया भरन गाँव के पनघट
कैसे जाए गोरी ?
औंधे मटके पे इक गुलनार, दूजा घट कैसे धरे।
हरे रामा, हरे रामा, रामा-रामा हरे-हरे !
छंद फिरें बेकार, तुकों पर
छाई है मायूसी।
उपमाओं पर करे अफसरी
उपन्यास जासूसी।
‘डेली वेजिज’ पे हैं अलंकार, कविता क्लर्की करे।