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राम-नाम-महिमा / तुलसीदास/ पृष्ठ 1
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राम-नाम-महिमा
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राम बिहाइ ‘मरा’ जपतें बिगरी सुधरी कबिकोकिलहू की।
नामहिं तें गजकी, गनिकाकी, अजामिलकी चलि गै चलचूकी।।
नाम प्रताप बड़ें कुसमाज बजाइ रहीं पति पांडुबधूकी।
ताको भलो अजहूँ ‘तुलसी’ जेहि प्रीति-प्रतीति है आखर दूकी।।
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नामु अजामिल -से खल तारन, तारन बारन -बारबधूको ।
नाम हरे प्रहलाद-बिषाद, पिता-भय-साँसति सागरू सूको। ।
नामसों प्रीति-प्रतीति बिहीन गिल्यो कलिकाल कराल, न चूको।।
राखिहैं राम सो जासु हिएँ तुलसी हुलसै बलु आखर दूको।।
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