राम-लषन इक ओर, भरत-रिपुदवन लाल इक ओर भये / तुलसीदास
राग टोड़ी
राम-लषन इक ओर, भरत-रिपुदवन लाल इक ओर भये |
सरजुतीर सम सुखद भूमि-थल, गनि-गनि गोइयाँ बाँटि लये ||
कन्दुक-केलि-कुसल हय चढ़ि-चढ़ि, मन कसि-कसि ठोङ्कि-ठोङ्कि खये |
कर-कमलनि बिचित्र चौगानैं, खेलन लगे खेल रिझये ||
ब्योम बिमाननि बिबुध बिलोकत खेलक पेखक छाँह छये |
सहित समाज सराहि दसरथहि बरषत निज तरु-कुसुम-चये ||
एक लै बढ़त एक फेरत, सब प्रेम-प्रमोद-बिनोद-मये |
एक कहत भै हार रामजूकी, एक कहत भैया भरत जये ||
प्रभु बकसत गज बाजि, बसन-मनि, जय धुनि गगन निसान हये |
पाइ सखा-सेवक जाचक भरि जनम न दुसरे द्वार गये ||
नभ-पुर परति निछावरि जहँ तहँ, सुर-सिद्धनि बरदान दये |
भूरि-भाग अनुराग उमगि जे गावत-सुनत चरित नित ये ||
हारे हरष होत हिय भरतहि, जिते सकुच सिर नयन नये |
तुलसी सुमिरि सुभाव-सील सुकृती तेइ जे एहि रङ्ग रए ||