राग टोड़ी
	राम-लषन इक ओर, भरत-रिपुदवन लाल इक ओर भये |
	सरजुतीर सम सुखद भूमि-थल, गनि-गनि गोइयाँ बाँटि लये ||
	कन्दुक-केलि-कुसल हय चढ़ि-चढ़ि, मन कसि-कसि ठोङ्कि-ठोङ्कि खये |
	कर-कमलनि बिचित्र चौगानैं, खेलन लगे खेल रिझये ||
	ब्योम बिमाननि बिबुध बिलोकत खेलक पेखक छाँह छये |
	सहित समाज सराहि दसरथहि बरषत निज तरु-कुसुम-चये ||
	एक लै बढ़त एक फेरत, सब प्रेम-प्रमोद-बिनोद-मये |
	एक कहत भै हार रामजूकी, एक कहत भैया भरत जये ||
	प्रभु बकसत गज बाजि, बसन-मनि, जय धुनि गगन निसान हये |
	पाइ सखा-सेवक जाचक भरि जनम न दुसरे द्वार गये ||
	नभ-पुर परति निछावरि जहँ तहँ, सुर-सिद्धनि बरदान दये |
	भूरि-भाग अनुराग उमगि जे गावत-सुनत चरित नित ये ||
	हारे हरष होत हिय भरतहि, जिते सकुच सिर नयन नये |
	तुलसी सुमिरि सुभाव-सील सुकृती तेइ जे एहि रङ्ग रए ||