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राम-लीला गान / 24 / भिखारी ठाकुर
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प्रसंग:
विवाह के बाद कोहबर की रस्म होती है। साली-सरहज कोहबर का द्वार छेकती हैं। उसी आनन्ददायक वेला का वर्णन है।
आनन्द होइहन आज ललसा हमारी।टेक।
बरबस रोकबऽ कोहबर के दुआरी, तब मुसुकइहन सुघर बर चारी। आनन्द होइहन.
दाया कके गउरी-गनेस तिरपुरारी, असहीं बिता दऽ उमर भर सारी॥ आनन्द होइहन.
नाता में लागबऽ हम रामजी के सारी, आज ना देहबऽ कहिया गारी? आनन्द होइहन.
धन-धन कइ दिहली जनक-दुलारी कहि-कहि के हुलसत भितरे ‘भिखारी’॥ आनन्द होइहन.