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राम-लीला गान / 42 / भिखारी ठाकुर

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सीताजी की विदाई

केवल प्रान प्यारी सिया मेरी पुत्री सरन तिहारी है। विलखत सब नर-नारी है।
लखन भरत रिपुहन से रानी, बार-बार कह गद्गद् बाता
अवधपुरी रघुकुल मनि राऊ, अतिसय कोमल सील सुभाऊ
कछु भूल होय तो करब माफ, तव चरन कमल बलिहारी है। विलखन...
अवध जाइ सिया करिहें बसेरी, भवन सून लागी अब मेरी
राखब छोह सिया पर नीके, पोसत भान जिमि कमल कली के
हम कहूँ का अतना जल्दी में, अब चलने के तइयारी है। विलखत...
जय सिरी सगुन रूप अवतारी, सोभा सील सिंधु बर चारी
जय करुनानिधान भगवाना, धरत रूप को संकर ध्यान
नित देहु दया करि के दरसन, बर माँगत दास ‘भिखारी’ है। विलखत...