राम-लीला गान / 5 / भिखारी ठाकुर
प्रसंग:
दशरथ ने गुरु वशिष्ठ की आज्ञा को स्वीकार कर राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेज दिया। वहाँ उन लोगों ने उपद्रवी राक्षसों का नाश किया। फिर, उनके साथ मिथिला की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में अहिल्या का उद्धार किया।
रामजी-लछुमन तजि के अवध नगरवा हो, डगरवा धइ के ना,
चललन मुनि जी का जवरवा हो, डगरवा धइ के ना।
चलत-चलत में पहुँचलन बगसरवा हो, पहरवा देबे नाम,
लगलन देखे के जंगल-झारवा हो, पहरवा देबे ना।
हूम का धूमगजरवा से दउरि के निसिचरवा हो, गोहरवा साजि के ना,
लगलन करे उपदरवा हो; गोहरवा साजि के ना।
दूनों भइया मारामारी के जरवा ओरववलन हो, महातमा भरवा ना,
बोले लगल जय-जयकरवा हो, महातमा भरवा ना।
भोजन करवाइ के कन्द-मूल फरहरवा हो, जतरवा कइलन ना,
मिथिला-पति का दरबारवा हो; जतरवा कइलन ना।
धरती के उसारवा किरिखी, गछिअन के बहारवा हो, पूछत गुरु से ना।
कइसन पथल ह अगसरवा होय पूछत गुरु से ना।
गौतम का बकरवा से भइल बा जरिछरवा हो, छुआइ के चरन ना,
कइ दऽ अधम के उधारवा हो; छुआइ के चरन ना।
कहत ‘भिखारी’ कुतुबपुर के रहनिहारवा हो, उतरवा करवा ना,
बहे गंगा-सरजुग जी के धारवा हो, उतरवा करवा ना।