राम-लीला गान / 6 / भिखारी ठाकुर
वार्तिक:
रामजी पुछलन हा विश्वामित्र से ‘बहतारी से के हई?’
विश्वामित्र जी- ‘ए राम! ई हई गंगा जीतहरे पूर्वज भगीरथ जी इनका के ले आइल बानी।’
भगरथी पति तारन को, भव सागर के तप कीन्हा महा। ब्रह्म मंडल ते निकली, शिवजी के जटा से समा के रहा॥
आ गई धरती पर दी तब पाप के मूल पहाड़ बहा। सुनिये रघुनाथ बिचार देख बसुधा में सुधा रस जात रहा॥
लखन सहित मुनि सुनि समाचार, हरे राम-राम; जाइ कर गंगा का किनार, हरे राम-राम।
मुनिजी से रामजी पूछत बारंबार, हरे राम-राम; कहँवाँ से कइसे बहली धार, हरे राम-राम।
सुरू से आखिर तक कहलन लगातार, हरे राम-राम; जवना तरहे दिहली पुरुखा तार, हरे राम-राम।
करिके असनान तीनो मुरती होइ के पार;हरे राम-राम; गइलन मिथिला बाजार, हरे राम-राम।
कहत ‘भिखारी’ नाई गाइ के ललकार;हरे राम-राम, मिललन दुकानदार दिलदार, हरे राम-राम।