भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राम-लीला गान / 7 / भिखारी ठाकुर
Kavita Kosh से
प्रसंग: मिथिला पहुँचने पर मिथिला-वासियों द्वारा राम लक्ष्मण के रूप का वर्णन
गरदन में सोभे गजमुक्ता के माल हे। बड़ सुंदर बाड़न दसरथ के लाल हे॥
कुंचित काक-पक्ष, सिर पर बाल हे। अलफी मुकुट क्रीट करत कमाल हे॥
दूनो भइया चलत बाड़न धीरे-धीरे चाल हे। फंेक देले बाड़न बसीकरन के जाल हे॥
रेखा तिलक भाल बीचे-बीचे लाल हे। राम-लछुमन के गुलाबी बा गाल हे॥
कहत ‘भिखारी’ अपना दिलवा के हाल हे। सूरत निरखि के प्रान भइल बेहाल हे॥