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राम करे / सुरेश विमल
Kavita Kosh से
'ऋद्धि-सिद्धि' और
'शुभ-लाभ'
अंकित हो
हर घर की देहरी
सिर्फ धनाढ्यों की
तिजोरियों पर नहीं
स्वस्तिक का मंगल चिन्ह
सज्जित हो हर द्वारे
सिर्फ़ साहूकार की
हवेलियों पर नहीं
सभी सम्मिलित हों
देव की पूजा में
संध्या-सवेरे
किसी अछूत के लिये
कभी बंद न हो
कोई देवालय...
अपना अपना हो
व्यवसाय सबका
अपनी-अपनी मेहनत
कोई किसी का न हो ऋणी
कोई किसी का
न करे शोषण...
एक के घर उत्सव
तो सभी हो आनंदित
एक की आपदा
सबकी हो
अंतर में सबके
सद्भावनाएँ और
जिव्हा पर अमृत हो
आंखों में नेह
और पांव में गति हो
सभी बंध जाएँ
फूलों से
एक माला में...
राम करे
ऐसा कुछ हो जाये
'राम-राज्य'
अब सपना न रहे
यथार्थ हो जाए।