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राम कहाँ मोरी माई भरत पुछे / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    राम कहाँ मोरी माई भरत पुछे
(१) जब सी भरत अवध मे आये,
    छाई उदासी भारी
    अड़घाट घेरियो मोहे परघाट घेरियो
    प्रजा ढुंढे जग माही...
    भरत पुछे...

(२) राजा दशरथ के चारी पुत्र,
    चरत भरत रघुराई
    चरत भरत को राज दियो है
    राम गया बंद माही...
    भरत पुछे...

(३) माता कौशल्या मेहलो मे रोये,
    बायर भारत भाई
    राजा रशरथ ने प्राण तज्यो है
    कैकई रई पछताई...
    भरत पुछे...

(४) राम बिना रे म्हारी सुनी आयोध्या,
    लक्ष्मण बीन ठकुराई
    सीता बीन रे म्हारी सुनी रसवोई
    अन कोण करे चतुराई...
    भरत पुछे...

(५) आगे आगे राम चलत है,
    पीछे लक्ष्मण भाई
    जिनके बीच मे चले हो जानकी
    अन शोभा वरणी न जाई...
    भरत पुछे...