राम की अग्निपरीक्षा / कल्पना पंत
वन-प्रांत में,
पाँवों में गड़ने वाले कण्टको को
अपने ही हाथों से निकालती
हृदय की टीस को दाँतों से दबाती
मैथिली का मन राम के साथ के वनगमन की स्मृतियों से घिर जाता है,
सोचती हैं जनकनन्दिनी
उस समय उनके पदों से कण्टकों
को निकालते कमलनयन के चारु नयन डबडबाए थे
यहाँ भी विजन वन है
वही तीक्ष्ण कण्टक
वही वन पशु
क्या राजा राम को
वनवासी राम की प्रिया
के कष्टों की स्मृति
नहीं हो आती होगी
क्या निमिष भर के लिए भी
राजा राम ने सोचा होगा
कि लोकोपवाद रानी के लिए था
राम की प्रिया
मुक्त थी उससे
पिता की आज्ञा पालन के लिए
वनगमन करने वाले रघुनंदन के
हृदय में
क्षण भर के लिए जागी होगी
पति के साथ के लिए राजसुखों का
त्याग करने वाली संगिनी की छवि ?
क्या उमड़ आई होगी
उनके मन में प्रिया के संग
राजपाट छोड़
वन में कुटी बना रहने की
भावना ?