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राम की मत प्रतीक्षा करो / पल्लवी मिश्रा

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सतयुग से द्वापर युग तक,
द्वापर युग से कलयुग तक
नारी ने तय किया है अन्तहीन सफर-
हर युग में रही एक जैसी
नारी की स्थिति मगर-
अबला नारी की वन में रक्षा
राम कर न पाए-
फिर भी जग में सर्वश्रेष्ठ नर,
मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए-
क्या राम ने पत्नी के बिना
बरसों नहीं बिताया?
मगर क्या किसी धोबी ने
उनके चरित्र पर लांछन लगाया?
राम ने तो पितृवचन निभाने का
पुण्य भी कमाया-
परन्तु सीता ने पतिव्रता होकर भी
आत्म सम्मान गँवाया-
सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने का कारण
क्या पत्नी का असह्य वियोग था?
या मात्र रघुवंश की कीर्ति को और अधिक
धवल करने का अनुपम संयोग था?
त्याग, सेवा और समर्पण में जनकसुता ने
सारी उम्र गुजारी-
परन्तु अन्त में हारी-
अपमानित होकर जननी धरती माँ की शरण में
समाहित हुई बेचारी-
आज सदियों के बाद भी
स्थिति में बदलाव नहीं आया है-
आज अन्तरिक्ष पर कदम रखकर भी
नारी मस्तिष्क, हृदय और आत्माविहीन
मात्र एक नश्वर काया है-
आज भी स्त्रियों से
सीता के आदर्शों की रक्षा की
अपेक्षा की जाती है;
जरा सी चूक हुई नहीं कि कदम-कदम पर
अग्नि परीक्षा ली जाती है।
राम के अन्य असंख्य चारित्रिक गुणों को
पुरुष भले ही न अपनाए-
लेकिन है कोई ऐसा सच्चरित्र
जो सन्देह होने पर
पत्नी को न ठुकराए-
देवअवतार होकर भी राम ने
पत्नी का हित न जाना था-
बलिदान की देवी सीता की
शुचिता को न पहचाना था-
इसलिए इक्कीसवीं सदी की नारियो
अपने अस्तित्व की स्वयं रक्षा करो-
कलियुगी रावणों से खुद को बचाने के लिए
किसी राम की मत प्रतीक्षा करो-
तुम्हें अपना मार्ग स्वयं प्रशस्त करना है
खुद को मनुष्य रूप में स्थापित करने के लिए
एक सदी और संघर्ष करना है।