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राम के धरम / सरोज सिंह

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राम के धरम रहीम के धरम
सब ले ऊपर इंसान के करम

काहे न बुझे उ बुरबक लोगवा
ई कुल हs बस सियासी भरम

आदमी भईल खून के पियासा
इहे कुल ह हैवानियत के चरम

पकावsता वोट दंगा के आंच प
करsता चोट देख के लोहा गरम

लूल कानून आन्हर-बहीर सत्ता
देख ई सब आवेला हमके सरम

इहे बा अपील 'रोज़' सबलोगन से
बुझे के होई देस के असल मरम