भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राम घलायो सीर / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लांघ हिमाळो आणा चाया
बैरी केई बार,
थाम्या बां नै राजस्थानी
बहा रगत री धार,

खिलै हिमाळै री घाट्यां में
जका सोवणा फूल,
बलिदान्यां रो लोही पोखै
बां फूलां रा मूळ

नदयां हिमाळै री जे देवै
मरू नै निज रा नीर,
इण में कांई बत्ताई, ओ
राम घलायो सीर,

सीस हिमाळो भरत खंड रो
हिड़दै राजस्थान,
न्यारा न्यारा अंग डील रा
मांय एक ही प्राण,

सगळा अंग बरोबर सै रो
सै पर सहज धिणाप,
कोनी कोई अंग कर सकै
निज मनमानी आप,

पुसट हुवैलो देस रवै जद
सगळा अंग निरोग,
मरजादा में रै सै भोगो
जीवण रा सुख-भोग!