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राम जी की माया / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
कोई बेचैन फिरता है, कोई घबराया घबराया
कयामत के दिन आए हैं, राम जी की माया ।
तनाव फैला हुआ है, देश भर में यहाँ वहाँ
जुल्म व सितम का एक सिलसिला चलाया ।
घर अँधेरे हो गए, गलियाँ दिखती हैं वीरान
शहरों को आग लगा दी, इन्सानों को जलाया ।
दूर-दूर तक जहाँ भी उनका कहर बरपा किया
जले गोश्त की बू औ' कोयला ही नज़र आया ।
पिछले कुछ समय से हंगामा है इस मुल्क में
मर्दों की टोपियाँ छिन गईं, औरतों का साया ।
(2003)