राम  नाम  जगसार  और  सब  झुठे  बेपार।
तप  करु  तूरी,  ज्ञान  तराजू,  मन  करु  तौलनिहार।
षटधारी  डोरी  तैहि  लागे,  पाँच  पचीस  पेकार।
सत्त  पसेरी,  सेर  करहु  नर,  कोठी  संत  समाज।
रकम नरायन राम खरीदहुँ, बोझहुँ, तनक जहाज।
बेचहुँ विषय विषम बिनु कौड़ी, धर्म करहु शोभकार।
मंदिर धीर, विवेक बिछौना, नीति पसार बजार।
ऐसो सुघर सौदागर संतो, जौं आवत फिरि जात।
‘छत्रनाथ’ कबहूँ नहिं ताको, लागत जमक जगात।