राम मिला दो / रामकृपाल गुप्ता
हे हनुमान!
मिला दो मुझको राम
तुम उसके दरबान।
हे अथाह बल सिन्धु
बालपन
कितने वन उपवन
आश्रम वाटिका तोड़
क्रीड़ा कौतुक वश
मोदक-सा
उदरस्थ कर लिया
रवि को
गुरूजन ऋषि मुनिगण
त्रिलोक सन्तप्त।
शापित हो भूले
निज शक्ति अपार।
याद करो हनु
शंकर के अवतार
कूद सागर पार
सिय की खोज
लंका दहन
याद की संजीवनी से
पुनर्जीवित लखन
कौन पुण्य तुमने
हनुमान कमाया
राम तुम्हारे पास
स्वयं चल आया
हर अवसर पर
शक्ति सुसुप्त जगाया।
सारा भारत भारतवासी
सदियों से
भूले-बैठे निज शक्ति-कोष
हतप्रभ दे रहा भाग्य को दोष
जब भी फिसला
धरती, पथ आँगन
को ही कोसा है।
सपने देखे स्वप्न रह गये
सदा भीरू मन
पग ठिठके है
खींचे शर
पीछे अटके है।
निज पर लघु विश्वास
जग क्यों आता पास
अन्तर में हनुमान
शापित, विस्मृत बल
निष्क्रिय।
हे महावीर!
अब करो राम को मुक्त
छोड़ों अपना एकाधिकार
मिलने दो सबको राम
थोड़ी-सी पुचकार चाहिए
ऊँचा हिमनग
गहरा सागर
लाँघ चलूँ
विश्वासयुक्त ललकार चाहिए
हे हनुमान!
मिला दो मुझको राम
तुम उसके दरबान।