राम राम राम भजो / हनुमानप्रसाद पोद्दार
(राग भैरवी-ताल दादरा)
राम राम राम भजो, राम भजो, भाई।
राम-भजन-हीन जनम सदा दुखदाई॥
अति दुरलभ मनुज-देह सहजहीमें पाई।
मूरख रह्यो राम भूल बिषयन मन लाई॥
बालकपन दुख अनेक भोगत ही बिताई।
स्त्री-सुत-धनकी अपार चिंता तरुनाई॥
रात-दिवस पसु की ज्यों इत-उत रह्यो धाई।
तृसना की बेलि बढ़ी पाप-बारि पाई॥
बात-पित्त-कफहु बढ्यो, दुखद जरा आई।
इंद्रिन की शक्ति घटी, सिर धुनि पछिताई॥
इतनेहि में कठिन काल घेरि लियो आई।
मृत्यु निकट देखि-देखि अति ही भय पाई॥
सोच करत मन-ही-मन अतिसै पछिताई।
हाय मैं न भज्यो राम, कहा कर्यो माई॥
मृत्यु प्रान-हरन करत कुटुंब तें छुड़ाई।
महादुःख रह्यो छाय, बिफल सब उपाई॥
पापन के फल-स्वरूप बुरी जोनि पाई।
दुःख-भोग करत पुनि नरकन महँ जाई॥
बार-बार जनम-मृत्यु, याधि अरु बुढ़ाई।
झेलत अति कठिन कष्ट, शांति नाँहि पाई॥
यहि विधि भव-दुख अपार बरने नहिं जाई।
भव-भेषज राम-नाम, श्रुति-पुरान गाई॥
राम-नाम जपत त्रिबिध ताप जग-नसाई।
राम-नाम मँगल-करन सब बिधि सुखदाई॥
प्रेम-मगन मन तें सकल कामना बिहाई।
जोइ जपत राम-नाम सोइ मुकति पाई॥