भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राम लखन मोरा बन के गमन कइलें / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
राम लखन मोरा बन के गमन कइलें हमरा के तेजी कहाँ गइलें हो लाल।
जब सुधी आवे राम साँवली सुरतिया से हिये बीच मारेला कटरिया हो लाल।
बालेपन से रामा गोदी में खेलवनी से जोरली सनेहिया तोरी गइलें हो लाल।
बिसरत नाहीं रामजी साँवली सुरतिया से छोटी-छोटी तीरवा धनुहिया हो लाल।
के मोरा खइहें रामा माखन मलइया से हँसि-हँसि मँगिहें मिठइया हो लाल।
कवना बिरिछ तले भींजत होइहें से राम लखन दुनू भइया हो लाल।
कोमल चरनियाँ रामा काँटा गरि जइहें से कइसे दू सूतिहें धरतिया हो लाल।
कंदमूल खइहें राम उहो नाहीं मिलिहें से भूखे होइहें हमरो ललनवाँ हो लाल।
कहत महेन्द्र कब ले होइहें मिलनवाँ से तरसेला दूनू रे नयनवाँ हो लाल।