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राम शर्मा के लिए / कांतिमोहन 'सोज़'

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(यह ग़ज़ल राम शर्मा के लिए)

चंचल नदिया मस्त हिरनिया कारी बदरिया कहता हूँ।
एक महाठगिनी माया को मैं भी क्या-क्या कहता हूँ॥

कोई मुझे पागल कहता है कोई बताता दीवाना
अब तो सयानों का दावा है मैं खुद ऐसा कहता हूँ।

मुझको भी दरवेश बताओ आकर मेरे पैर छुओ
मैं भी तो जीने-मरने को खेल-तमाशा कहता हूँ।

मुझसे कोई आस न रक्खे मुझको अपना होश कहाँ
मैं तो ख़ुद अपनी हस्ती को खेल पराया कहता हूँ।

मैं हूँ तो चालाक मगर सबको इसका एहसास नहीं
ज़िन्दा हूँ फिर भी अपने को मैं परवाना कहता हूँ।

कुछ टूटी-फूटी ग़ज़लें हैं कुछ नग़्मे कुछ अफ़साने
जिसको मैं अपने जीवन का कुल सरमाया कहता हूँ।

सोज़ की बातें सुनकर अक्सर लोग हँसा ही करते हैं
उसको जिस्म बताता हूँ मैं ख़ुद को साया कहता हूँ॥

2002-2017