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राम सिंग डरता है / सुदर्शन वशिष्ठ
Kavita Kosh से
रामसिंग डरता है
कुछ ऐसी चीज़ों से जो दिखलाई नहीं पड़तीं
मसलन ईश्वर-सरकार,रोग-भोग,इकरार-प्यार,मेहर-कहर
डरता है कुछ चीज़ों से जो दिखती हैं सामने साफ़ृ-साफ़
मसलन रेट-पेट-ग़ेट,माल-गाल-चाल,अस्पताल।
खाता है जल्दी-जल्दी
जैसे खदेड़ रा हो ग़डरिया
लेता है स्वाद डर-डर कर।
देखता है जल्दी में
जल्दबाजी में पुचकारता है
पुकारता है जल्दी मे।
सोता है जल्दी-जल्दी
उठता है जल्दी-जल्दी
डर-डर कर बोलता है
सुनता है डर-डर कर।
खाता है डर-डर कर
डर-डर प्अर पीता है।
हँसता है डरकर
डरता हुआ रोता है।
वह सोचता है
चार जने जो हँसी ठोठोली कर रहे
उस पर
वे लोग खडयंत्र रच रहे
उस पर
बार-बार जो उठ रही उँगली
उस पर।
राम सिंग
डर-डर कर जिया है
मरेगा डर-डर कर।