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राम सिय भज हे मना / प्रेमलता त्रिपाठी

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राम सिय भज हे मना नित पावना।
पुण्य पावन प्रीति छलती कामना।

वंदना करती नयन भर नीर मैं,
सींचती तन-मन सदन कर साधना।

हूँ करुण मैं देख जलती लौ शिखा,
जल रहा तन कीट साधक भावना।

है उजाला साथ मेरे स्नेह बन,
मन हिलोरंे ले रहा चढ़ पालना।

बीच भॅंवर अब पड़ी नौका सखे,
पथ खड़ी बाधा सभी है टालना।

वंचना के तार उलझे जा रहे,
बंध पूरा है तुम्हें ही काटना।