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रावण ओर मंदोदरी / तुलसीदास / पृष्ठ 6

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रावण ओर मंदोदरी

( छंद संख्या 27 से 29 )


(27)

कह्यो मातु मातुल, बिभीषनहूँ बार-बार,
आँचरू पसार पिय! पायँ लै-लै हौं परी।

बिदित बिदेहपुर नाथ! भृगुनाथगति,
समय सयानी कीन्ही जैसी आइ गौं परी।

बायस, बिराध, खर, दूषन, कबंध, बालि,
बैर रघुबीरकें न पूरी काहूकी परी।।

कंत बीस लोयन बिलोकिए कुमंतफलु,
ख्याल लंका लाई कपि राँड़की-सी झोपरी।27।

(28)
 राम सों सामु किएँ नितु है हितू,
कोमल काज न कीजिए टाँठे।

आपनि सूझि कहौं , पिय!
बूझिबे जोगु न ठाहरू, नाठे।।

 नाथ! सुनी भृगुनाथकथा,
बलि बालि गए चलि बातके साँठे।

 भाइ बिभीषनु जाइ मिल्यो,
 प्रभु आइ परे सुनि सायर काँठे।28।

 (29)
        
पालिबेको कपि-भालु-चमू जम काल करालहुको पहरी है।
 लंक-से बंक महा गढ़ दुर्गम ढाहिबे-दाहिबेको कहरी है।।

तीतर-तोम तमीचर-सेन समीर को सूनु बड़ो बहरी है।
नाथ! भलो रधुनाथ मिलें रजनीचर-सेन हिएँ हहरी हैं।29।