रावण का पुनर्जन्म हो चुका है / राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल
रावण का पुनर्जन्म हो चुका है
सिर धुन रहे हैं राम
और दरबारी हो गये हैं
आकर्षक पुरस्कार की लालसा में
सारे तुलसी
अथवा बास से बेस्ट चिट
पाने की टोह में
सीता को पहुँचा रहे हैं
स्वयं अशोक बाटिका में
खीझ कर कुंठा
स्वयं ब्रह्मचारिणी हो गई है।
अग्निपरीक्षा दे रही है
नपंुसकता।
युग का पुरूषार्थ कुंभकरण
बन चुका है।
हमारी विद्वता, मनीषा
जंजीर बँधे
अलसेशियन के समान
संकेत पर भौंक रहे हैं
और अर्धचेतन सूर्पणखा अपनी
दानवीयता से बेखबर हो
कर्म के लक्ष्मण को ग्रसने
आमादा हो गई है।
राम की खड़ाऊँ लेकर भरत
राम के खिलाफ जूडीशियल
इंक्वायरी करा रहा है।
अयोध्यावासी किंकर्तव्यविमूढ़ हैं
कि ऐसे में वे क्या करें?
लोग भय से फिर भी आशा से
कभी कभी सोच उठते हैं कि
क्या तुलसी का भी पुनर्जन्म होगा?
रावण का तो पुनर्जन्म हो चुका है।