रावलपिंडी की लोई में कविता - 1 / कुमार कृष्ण
हमेशा कि तरह आज भी निकली है धूप
हमेशा कि तरह आज भी थोड़ा ठण्ढा है फाल्गुनी दिन
कहीं कोई ख़ास नज़र नहीं आता बदला हुआ
हाँ, लाल औजारों से कविता को धार देने वाला
कहीं चला गया है एकाएक वह पंजाबी लोहार
उसका इस तरह चले जाना
आदमी और कविता दोनों के लिए एक दुःख भरी ख़बर है
जिसे मैं पढ़ता हूँ बार-बार और सोचने लगता हूँ-
एक छोटी-सी लड़ाई के बारे में
तेईस बरस पहले मैंने पहली बार उस शख़्स को
जब लल्लन राय के घर देखा था
वह कविता और रावलपिंडी दोनों पर
एक साथ बात कर रहा था
वह जान चुका था बहुत समय पहले-
रंग खतरे में हैं
इसीलिए धूमिल की तरह कोई
मुनासिब कार्यवाही करना निहायत ज़रूरी है
वह लड़ता रहा लगातार-
' एक छोटी-सी लड़ाई
छोटे लोगों के लिए
छोटी बातों के लिए'
बनाता रहा एक खूबसूरत तस्वीर
आने वाले कल की
सिलता रहा वह पंजाबी फकीर
रावलपिण्डी की फटी हुई लोई
निभाता रहा क्लर्क और कविता का रिश्ता।