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राशन / निर्मल कुमार शर्मा

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एक तो मूंगाई री मार
बीं पर मोलो रह्यो जमानो
दोरो होग्यो घर-बार चलाणों
घरवाली देण लागी नित तानो

बा औरत हो- ना हो, कीं फरक नहीं
जो, हाथे रोटी कर ना घाल सके
बो मिनख कहावे मिनख नहीं
जो टाबरिया ना पाळ सके

किण विध होसी कहो गुजारो
नित कठ स्यूं ल्याऊँ चून उधारो
अरे, थांसूँ चोखी तो पपिये री बाई है
जो, राशन रा गेहूँ-शक्कर ले आई है

आ सुणता ही तन में लागी आग
सूत्योड़ो शेर गयो बस जाग

जीयां भी हो राशन लाणो है
आ धार के पक्की मन में
माथे धर केसरिया पाग
बीर हुयो ज्यूँ वीर हो रण में

पूग्यो तो चकित रे गया नैण
दुकान बंद पण लाम्बी लैण

आगथिया-पागाथिया ने पूछ्यो
दुकान कदे तक खुलसी
बोल्या, डिपोहोल्डर री घड़ी में
जद, दिनुगे रा नऊ बजसी

बीं घड़ी में नऊ तो बज्या नहीं
पण म्हारी बारा बजगी
जद धक्का सूँ म्हारी ठोडी
अगला मिनख रे सर सूँ भिडगी

बो, गुस्से सूँ हो के लाल
अर पकड्या म्हारा बाल
खायोड़ो बो ताव
जद खेलण लाग्यो दूजो दाँव

मैं बोल्यो भाई मिनख हूँ मैं
थारो राशन कार्ड नहीं
क्यूँ इत्ती जोर सूँ पींचो हो
गरदन म्हारी भींचो हो

पकड़ ने थोड़ी ढीली कर द्यो जी
गळती मानूँ माफ़ तो कर द्यो जी

बो बोल्यो अबकी छोडूं हूँ
पण फ्यूचर में या ध्यान करो
धक्को आवे तो आगे ट्रांसफर करो
आ थोड़ी की सीधा ऊपर पड़ो

बो ज्यूँ ही गरदन रीलीज करी
मैं खट से नोटेड प्लीज करी
धक्का आया, घणा ही फेर
पण, मैं डटयो रह्यो ज्यूँ शेर

ज्यूँ-ज्यूँ लांबी होवण लागी छायाँ
लोग जावण लाग्या हो काया
पण ऊपरवाला म्हा पर मेहर करी
क्या हुयो जो थोड़ी देर करी

फट-फट-फट फटफटटियो बोल्यो
मालिक आय दूकान ने खोल्यो
आताँ ही कार्ड करया बीन भेला
माल पाछे, पइसा दो पेलां

या म्हारे समझ ना आई बात
क्यूँ लेण-देण होवे ना साथ
जद माल तुल्यो तो भेद खुल्यो
मिली भीगी शक्कर अर गेहूँ सूल्यो

मैं बोल्यो ओ ले जाऊँ कोनी
देवो तो माल देवो आछो
बो बोल्यो बोर्ड पढो बारे
बेच्योड़ो माल नहीं पाछो

भायाँ अब थें ही मदद करो
चोखा गेहूँ दे दो दस-बीस सेर
बो माल ले गयो घर, तो
घरवाली ताना देवेली फेर

बिसबास दिलाऊँ
जाँ भायाँ सूँ आज मदद मैं पासूँ
अगली कविता में पक्का सूँ
बाँरा ही गुण मैं गासूँ  !!