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राष्ट्रगान गूँजे कंठों में / मधुसूदन साहा
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राष्ट्रगान गूँजे कंठों में
मुखरित हो सम्मान हमारा।
इसमें 'जन-गण-मन' की आशा,
भारत की संचित अभिलाषा,
कवि गुरु की वाणी की गरिमा
कोटी-कोटी कंठो की भाषा,
अक्षर-अक्षर में उद्भासित
सदियो का बलिदान हमारा।
सारा राष्ट्र इसे ही गाता,
एक साथ मिलकर दुहराता,
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण
सबका इससे सीधा नाता,
यही देश भाग्य-विधाता
संस्कृति का दिनमान हमारा।
इसमें सबका स्नेह समाहित,
अंतर्मन का भाव प्रवाहित,
जब-जब यह अनुगुंजित होता
कण-कण हो जाता उत्साहित,
इसके छ्ंद-छ्ंद में भासित
सब संचित गुणगान हमारा।