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राष्ट्रीय शोक / नरेश मेहन
Kavita Kosh से
एक थानेदार ने
डाला था
एक अबला की चोली में हाथ
और
सुलाया था
अपनी ही मां के बदन पर
उसके जवान बेटे को
मगर
उस दिन
दफ्तर मे न छुट्टी थी
न नियंताओं को चिंता।
मैं लाख चाहकर भी
नहीं मना गया
राष्ट्रीय शोक।