भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राष्ट्र निर्माण / ज्योतीन्द्र प्रसाद झा 'पंकज'
Kavita Kosh से
आओ जन-जन देख तन-मन धन
राष्ट्र भवन निर्माण करें हम।
कोटि कोटि कंठों से भारत -
गौरव का जयगान करें हम।
यह प्रताप की पुण्यभूमि है
'शिवा' 'कुॅंवर' की जन्मभूमि है
'लक्ष्मीबाई' की स्मृति लेकर
कण-कण में आह्वान भरें हम।
अमर शहीदों की कुर्बानी
बलिदानों की अमिट निशानी
स्वर्ण वर्ण में अंकित कर अब
जड़ में अभिनव प्राण भरें हम।
शेष न रहे द्वेष की छाया,
बंधु-भाव सरसे मन भाया
उतरे स्वर्ग धरा पर जिससे
मंगलमय अभियान करें हम।
रहे एक भी नहीं उपेक्षित
रहे एक भी नहीं बुभुक्षित
नहीं तिरस्कृत लांछित कोई
अग-जग का निर्माण करें हम।