रास्ता काट गई भूरी बिल्ली के लिए / प्रकाश मनु
ओ प्यारी-प्यारी भूरी बिल्ली
माफ करना
उन अदृश्य अत्याचारों के लिए जो मैं शुरू से
तुम पर करता रहा हूं।
तुम पर लादता रहा हूं ढेरों असगुनों
अनिष्टों, मानसिक व्याधियों का भार
एक छोटे से जीव पर, उफ ऐसा अत्याचार।
माफ करना, ओ प्यारी-प्यारी भूरी बिल्ली।
कि मैंने याद करने की कोशिश ही नहीं की कभी
कि तुम खुद में हो एक बांकी छलांगदार शख्सियत,
तुम्हारी चपल चुस्ती-कांच की सी
बिल्लौरी आंखों की सुंदरता का जादू
कभी याद ही नहीं आया।
भूल गया लपककर गोद में बैठ
कुहनियां पंजे हिलाता लाड़।
कि मैं भूल गया सब कुछ-
सिर्फ तुम्हारा अनजाने में रास्ता काटकर
गुजर जाना भर
भारी था
मेरी तमाम भारी-भरकम पोथियों के खरबों-खरब अक्षरों
और गट्ठर भी डिगरियों पर
भारी था बुद्धि और चेतना की सौ महीन परतों पर।
आज तक हैरान हूं-
न जाने मेरे दिमागी प्रकोष्ठ
कि किस अंधेरे काले काने में तुम छिप जाती थाीं
होशियारी से
और सधे कदमों से शुरू करती थीं अपना काम...
कि मैं खामखा डर जाता था।
माफ करना,
ओ प्यारी-प्यारी भूरी बिल्ली।
आज याद आ गई एक पुरानी कहावत
कि जो सबसे अधिक डरे हुए होते हैं
वे ही करते हैं सबसे ज्यादा अत्याचार
इस दुनिया में।
और भय-फिर चाहे वह बिल्ली के रास्ता
काट जाने का ही क्यों न हो-
अलमारी में चिन दी गई
पोथियों की संख्या या मोटाई
से दूर नहीं होता।