भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रास्ता देर तक सोचता रह गया / हिलाल फ़रीद
Kavita Kosh से
रास्ता देर तक सोचता रह गया
जाने वाले का क्यूँ नक़्श-ए-पा रह गया
आज फिर दब गईं दर्द की सिसकियाँ
आज फिर गूँजता क़हक़हा रह गया
अब हवा से शजर कर रहा है गिला
एक गुल शाख़ पर क्यूँ बचा रह गया
झूठ कहने लगा, सच से बचने लगा
हौसले मिट गए तजरबा रह गया
हँसते गाते हुए लफ़्ज़ सब मिट गए
आँसुओं से लिखा हाशिया रह गया
वक़्त की धार में बह गया सब मगर
नाम दीवार पर इक लिखा रह गया
उस के दम से कहे शेर मैं ने ‘हिलाल’
फूल इस धूप में जो खिला रह गया