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रास्ता / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
अपने अतल अँधेरों में
उतरते-उतरते
तुम ने कहा,
‘ढूँढ़ लेना
तुम भी कोई रास्ता’
तब से
बहुत रास्ते देखे हैं मैंने
वे जो औरों की आँखों में हैं
या शब्दों में,
रास्तों का विकल्प
अब मुझे नहीं सालता
वर्जित है क्योंकि
बस तुम्हारा
रास्ता