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रास्ते कब मुश्किलों से भागते हैं / कल्पना 'मनोरमा'

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रास्ते कब मुश्किलों से भागते हैं।
रास्ते ही रास्तों को काटते हैं।

मंजिलों की टोह में कब कौन निकले,
रास्ते दिन-रात अक्सर जागते हैं।

क्या हुआ माँ-बाप ने, कुछ कह दिया तो
गैर कब आकर किसी को डाँटते हैं।

भूख बच्चों की नहीं,जब देख पाते ,
सौ दफ़ा मरते हैं,तब कुछ माँगते हैं।

सात कोठों में छुपालो जुर्म ख़ुद का,
जानने वाले तो सब कुछ जानते हैं।

जीत लेते है जहाँ की हर लड़ाई ,
सिर्फ़ बच्चों से ही हम,क्यों हारते हैं।

छूट जाते कल्प पीछे इस जहाँ में,
वक्त के संकेत को, जो टालते हैं।