भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रास्ते में कहीं खोना ही तो है / ज़ेब गौरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रास्ते में कहीं खोना ही तो है
पाँव क्यूँ रोकूँ के दरिया ही तो है.

कौन क़ातिल है यहाँ बिस्मिल कौन
क़त्ल हो ले के तमाशा ही तो है.

वो चमकती हुई मौजें हैं कहाँ
उस तरफ़ भी वही सहरा ही तो है.

मर्ग ओ हस्ती में बहुत फ़र्क़ है क्या
दफ़्न कर दो उसे ज़िंदा ही तो है.

नारसाई का उठा रंज न 'ज़ेब'
हासिल-ए-ज़ीस्त के धोका ही तो है.