भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रास्ते / आलोक धन्वा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घरों के भीतर से जाते थे हमारे रास्‍ते
इतने बड़े आँगन
हर ओर बरामदे ही बरामदे
जिनके दरवाज़े खुलते थे गली में
उधर से धूप आती थी दिन के अंत तक

और वे पेड़
जो छतों से घिरे हुए थे इस तरह कि
उन पेड़ों पर चढ़कर
किसी भी छत पर उतर जाते

थे जब हम बंदर से भी ज़्यादा बंदर
बिल्ली से भी ज़्यादा बिल्ली
 
हम थे कल गलियों में
बिजली के पोल को
पत्थर से बजाते हुए।

(1996)