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रास / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
बरखा के दिन-
जेन्होॅ रात।
ठनका के राग सुनी
दादुर चुप भेलै
नद्दी के बोहोॅ में पर्वत तक हेलै
की फेनू लत्ती के, ठारी के बात
बरख के दिन-
जेन्होॅ रात।
कहाँ गेलै गर्मी के लू भरलोॅ आगिन
लहरै छै खुल्ला में
नाग आरो नागिन
खोजै छै दूध लावा
भर-भर परात।
बरखा के दिन
जेन्होॅ रात।
जूही केॅ भावै नै खुशबू के बंधन
मालती भी होने ही
केन्होॅ उमतैलोॅ छै