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राहत दो या उलझन दो / कृष्ण कुमार ‘नाज़’

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राहत दो या उलझन दो
ज़ह्न को कुछ तो ईंधन दो
 
घोर अँधेरा, तेज़ हवा
एक दिये के दुश्मन दो
 
आपस की नासमझी है
एक ही घर में आँगन दो
 
कितनी ख़ुश है नई दुल्हन
अबके बरस में सावन दो
 
आपस में खटकेंगे भी
गर हों घर में बर्तन दो
 
गिनलूँ मैं अपने भी दाग़
लाओ मुझको दरपन दो