भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राहत ने मिरे घर में न राहत पाई / रतन पंडोरवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राहत ने मिरे घर में न राहत पाई
हां ग़म ने मगर ख़ूब मसर्रत पाई
हर एक ने ठुकराया जिसे रोज़े-अज़ल
किस्मत से 'रतन' मैं ने वो किस्मत पाई।

महरूमीए-तक़दीर का नक़्शा हूँ मैं
नाकामे-तमन्ना की तमन्ना हूँ मैं
नाचीज़ पे बख़्शिश की नज़र कर या रब
आसी ही सही बन्दा तो तेरा हूँ मैं।

नाकामीए-पैहम है मुक़द्दर मेरा
मायूसीए-पुरग़म है मुक़द्दर मेरा
अश्क़ों की रवानी है कहानी मेरी
इक दीदए-पुरनम है मुक़द्दर मेरा।

दुनिया में रहो शाने-महब्बत बन कर
महफ़िल में रहो ऐने-सदाकत बन कर
राहत की तमन्ना है अगर दिल में 'रतन'
छा जाओ मुसीबत पे मुसीबत बन कर।