भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राहत मिलेॅ / बिंदु कुमारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन नुकैलैं
सुरूज छिपलैं
रात होलै
अन्हार पसरलै
आय सरंगोॅ मेॅ मेघ नै छै
आमावस्या भी नै छेकै
फेरू
चान कैहिनेॅ नी देखाय छै
चहूँ ओर अन्हार छै
गुहार करै छी
मेघ छटें
सरंग साफ हुवेॅ
चान देखावेॅ
राहत हमरा मिलेॅ।