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राही / ज़िया फतेहाबादी

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दिल की आवाज़ ना सुन
पेच-दर-पेच तेरी राहें हैं
ये उम्मीदें ही तेरी आहें हैं
फ़िक्र के जाल ना बुन

पाँव आगे ही बढ़ा
ठोकरों में तेरी जाम-ओ सुबू
मुड़ के पीछे की तरफ देख ना तू
तू कहाँ से था चला

तेरी मंज़िल है कहाँ
ज़ुल्मतें तैरती आती हैं मुदाम
उलझनें धडकनें हैं तेज़ खिराम
कर अज़ाईम को जवाँ

ये निगाहों में तेरी
अक्स धुन्दला-सा नई दुनिया का
कोई मज़लूम ना ज़ालिम होगा
हर तरफ होगी ख़ुशी

देख सकता है तो देख
पेट सिमटे हुए आँखें बेनूर
कुवतें शिद्दत ए ग़म से मजबूर
ये नहीं भाग के खेल

तेज़ कर अपने क़दम
मोड़ना है रुख ए हस्ती तुझ को
खींचती रह गई पस्ती तुझ को
खुल गया ग़म का भरम

नगमा ए साज़ ना सुन
चींख़ती रूहें उड़ी जाती हैं
ये कभी चैन नहीं पाती हैं
दिल की आवाज़ ना सुन